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पूँजीवाद क्या है? (बेहद संक्षिप्त विवरण )


हमारा समाज एक पूंजीवादी समाज है जो मुनाफे की व्यवस्था पर चलता है. यह निजी संपत्ति पर मालिकाने की व्यवस्था है इस व्यवस्था में समाज में दो वर्गों में बंटा होता है एक पूंजीपति वर्ग जिसके पास समाज के उत्पादन के साधन मसलन कम्पनिया, फैक्ट्रीयां, मिलें ,कोयले और दूसरे खनिजों की खाने, खेती योग्य ज़मीन वगैरह होते हैं पर ये मालिक (पूंजीपति) खुद इन साधनो से उत्पादन नहीं कर सकते इन्हे ज़रुरत होती है दूसरे वर्ग की वो लोग जिनके पास ऐसी कोई संपत्ति नहीं है, ये दूसरा वर्ग अपनी मेहनत के दम पर सारा उत्पादन करता है. ऐसे में ये दोनों वर्ग संघर्ष की स्थिति में रहते हैं , मालिक वेतन कम करके, काम के घंटे बढ़ा के, नयी मशीन लगाके  मुनाफा बढ़ाने के लिए और मज़दूर वेतन बढ़ाने, काम के घंटे काम करने के लिए .


पूंजीवादी व्यवस्था में उत्पादन किसी प्लैंनिंग से नहीं होता, कई पूंजीपति उत्पादन के अलग अलग सेक्टरों में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा की होड़ में रहते हैं ,वे जिस ओर तेज़ी देखते हैं उस तरफ उत्पादन बढ़ाने की होड़ लग जाती है, ज़ादा से ज़ादा उत्पादन जल्दी से जल्दी और कम से कम से कम लागत में करने की होड़ में नयी मशीने लगायी जाती है| नयी मशीने कम मजदूरी से ज़ादा माल का उत्पादन करती है, जिससे कुछ समय के लिए एक पूंजीपति के मुनाफा बढ़ जाता है दुसरे पूँजीपति कम्पटीशन में बने रहने के लिया या तो नयी टेक्नोलॉजी और मशीनों में निवेश करते हैं या तो तबाह होकर धंदे से बहार हो जाते हैं| 


नयी मशीने हज़ारो मजदूरों को बेरोज़गार करती हैं जो अब अपनी खरीदने की छमता भी खो देते हैं | और जैसा की हम  जानते हैं की मुनाफे का स्रोत मॉल पर लगी मज़दूरी और उससे पैदा हुए अतिरिक्त मूल्य(surplus value) है, मालिक हमेशा मज़दूरी कम करने की फिराक में रहते हैं,  मुनाफा बढ़ाने की होड़ में उन्ही मज़दूरों का वेतन कम किया जाना होता है जो असल में इन मालों का ग्राहक है और जो वेतन काम होने से मालो की खपत कम करेंगे |  


मुनाफे की इस होड़ में जबकी समाज की असल ज़रूरतों का कोई ठोस अंदाजा नहीं होता और उत्पादन सिर्फ मुनाफे के लिए होता है तब हम देखते हैं की बाज़ार की ज़रूरत और उत्पादन में कोई मेल न होने से अतिउत्पादन की स्थिति पैदा होती है, एक तरफ तो बाज़ार मालो से भरा होता है दूसरी तरफ उपभोक्ता बेरोज़गारी, वेतन में कटौती, छंटनी के डर  से चीज़ो की खपत नहीं कर पाते | रोज़मर्रा के मालो के उत्पादन के साथ साथ यही स्थिति उत्पादन के साधनों  (फैक्ट्री, मिल यूनिट, नयी मशीने उपकरण इत्यादि) के उत्पादन में भी होती है ज़ादा से ज़ादा निवेश नए कारखाने मशीने लगाने में किया जाता है . 

अतिउत्पादन की इस स्थिति को हम मंदी कहते हैं| अतिउत्पादन का ही उदाहरण है की रियल स्टेट सेक्टर में लाखो मकान बने खाली पड़े हैं पर लोग बेघर हैं, 2019 में ऑटो सेक्टर की मंडी में मारुती के पास हज़ारो कारें बनकर पड़ी थी पर उनके खरीददार ना थे| 


पूँजी से आज़ाद सर्वहारा मज़दूर वर्ग की हालत पूंजीववाद में क्या होती है? उसके क्या संघर्ष होते हैं इससे तो हम सब वाकिफ हैं| बेरोज़गारी, भुकमरी, काम करने के ख़राब हालात, लम्बी शिफ्ट, मालिकों द्वारा बे-रोक टोक वेतन में कटौती और अन्य तरह के शोषण के जवाब मजदूर वर्ग की क्रांतिकारी ताकते भी मज़दूरों को यूनियनों में संगठित करती हैं और पूँजीवाद के खिलाफ संघर्ष तेज़ होता है इन्ही संघर्षो के फलस्वरूप सरकार जनवादी और जनहित के फैसले लेने पर मजबूर होती हैं| 


अगली बार हम देखेंगे इस संघर्ष की स्थिति में क्या संभावनाएं उत्पन्न होती हैं और इसके आभाव में कौन सी राजनैतिक ताकतें जनता की को अपने तरफ खींच लेती हैं 

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Short definition of Fascism.

  Fascism is an ultra-reactionary, open dictatorship of the bourgeoisie, it uses racism, communalism, hyper-nationalism to break the unity of the working-class masses. When the conventional political elite class loses people's confidence, and faces strong opposition from the people, this ruling class, due to pressure from public and other political obligations of the electoral system is unable to make decisions in favor of the capitalist class as required by them, in such times big bourgeoise class looks for a fascist party which can break the unity of people and make sweeping decisions in their favor. Fascism is a mass movement generally based on the middle class, petty-bourgeois, lumpenproletariat, who became disillusioned with liberal parties due to worsening economic conditions. In the absence of a strong working-class movement, this class becomes the foot soldier of fascism. Fascism has no regard for parliamentary norms, values, systems, constitutions, etc.(howsoever fake they