भारतीय समाज की विडंबना ये है की बुद्धि और बुद्धिजीवी से बैर रखो लेकिन नफरती प्रचार को सच मानो, लिखित और सर्वमान्य इतिहास गलत है पर संघ और फासीवादियों द्वारा बताए जा रहे घटनाक्रम सच है, इतिहास पढ़ने और उसकी विवेचना करने वालो का ब्रेनवाश हुआ है पर जाने माने झूटे लोग सच्चे हैं। कोई वामपंथी (कम्युनिस्ट) कश्मीरी पंडितो के ऊपर हुए अत्याचार को नकारता नही है, किसी का ये कहना नही है की पंडितो के साथ गलत नहीं हुआ, जबरदस्ती विस्थापन जहां कही भी होता है वो गलत ही है, और जब कश्मीर में अफगानिस्तान और दूसरे कबायली क्षेत्र से इस्लामिक कट्टरपंथियों का आना शुरू हुआ तब उसके खिलाफ आवाज उठाने वाले कम्युनिस्ट ही सबसे आगे थे। पर तब ये संघ के लोग क्या कर रहे थे, केंद्र में सरकार इन्ही के समर्थन से चल रही थी। उस समय कश्मीर का राज्यपाल जगमोहन जो की एक संघी व्यक्ति ही था उसने पंडितो को रोकने के लिए क्या किया? जगमोहन ने न सिर्फ टीवी से पंडितो के रुकने के लिए अपील करने से मना कर दिया बल्कि घाटी के अंदर ही रिफ्यूजी कैंप बनवा दिए जिससे पंडितो का मनोबल और टूट गया। नब्बे में जब एक तरफ देश दिखावटी समाजवाद के मुर्दे क