साथियों! हम सभी मौजूदा समय में सांप्रदायिकता और उससे उपजने वाली हिंसा से दो चार है, सभी प्रोग्रेसिव लोग जो नागरिकों की बराबरी के सिद्धांत में विश्वास रखते थे और अमूमन अन्याय होते समय न्याय व्यवस्था और पुलिस प्रशासन की तरफ न्याय की आशा से देखते थे इस समय ये जान चुके हैं की मौजूदा व्यवस्था अल्पसंख्यकों, दलितों और दूसरे हाशिए पर पड़े पिछड़े वर्गो के दमन और शोषण के अलावा कुछ नही कर सकती। कुछ लोगों का विचार है की इसका जवाब संघ की राजनैतिक चुनावी पार्टी भाजपा को हरा कर दिया जा सकता है, पर हम ये देख चुके हैं की चुनाव कोई भी जीते या हारे अंत में सरकार साम दाम दण्ड भेद से भाजपा की ही बनती है, दूसरे यदि अन्य पार्टी की सरकार बन भी जाती है तो क्या हम ये मान सकते हैं की ये जीती हुई पार्टी मौजूदा फासीवादी उफान से लड़ने के प्रति प्रतिबद्ध है, क्या ये अन्य पार्टियां जहां सत्ता में मौजूद हैं वहां इस लड़ाई को ईमानदारी से लड़ रही हैं या ये सब मात्रा चुनाव जीतने के स्टंट तक सीमित है? क्या किसी अन्य पार्टी की चुनावी जीत जमीन पर मौजूद सांप्रदायिक संगठनों उनके द्वारा बरगलाए युवा बेरोजगारों की मध्य वर्गीय